पहले का समय
परिवार था संग एक घोंसला,
जहां प्रेम का बहता झरना।
दादा-दादी की कहानियां,
मां के हाथों का वो खाना।
सुख-दुख में सब साथ खड़े,
प्यार के रिश्ते गहराए पड़े।
त्योहारों का उत्सव सजा,
हर दिल में था अपनापन बसा।
आज का समय
अब घर छोटे, दिल भी छोटे,
व्यस्तता में सब अपने में खोते।
मोबाइल की दुनिया ने दूर किया,
संवेदनाओं को फीका किया।
त्योहार हैं अब औपचारिकता,
संबंधों में आई है एकरूपता।
सुख-दुख में अक्सर अकेले,
संवेदनाएं होती हैं अब धुंधली।
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