वर्ड्स वॉर: हंसी के मुकाबले में एलियन्स!

500 साल बाद, जब धरती पर हंसी इतनी ताकतवर हो गई कि लोग रोने के बजाय ठहाके लगाकर मुश्किलें हल करने लगे, तब एलियन्स ने इसे "खतरा" मान लिया!
उन्होंने इंसानों को चेतावनी दी –
"या तो अपनी हंसी कम करो, या हम तुमसे 'वर्ड्स वॉर' में भिड़ेंगे!"

अब पहली बार, युद्ध हथियारों से नहीं, बल्कि चुटकुलों और तर्कों से लड़ा जाने वाला था!


जब एलियन्स ने पहला वार किया!

एलियन्स ने अपने सबसे बुद्धिमान प्राणी "गंभीरोक्स" को भेजा, जो हंसी से नफरत करता था।
उसने इंसानों को धमकाते हुए कहा –
"हमारे ग्रह पर हंसी गैरकानूनी है! अगर कोई हंसे, तो उसे 10 साल की सजा!"

इंसानों ने जवाब दिया –
"अरे भाई, हम तो रोने वालों को भी हंसा देते हैं, तुम्हें भी हंसी आ ही जाएगी!"

गंभीरोक्स गुस्से में लाल हो गया और बोला –
"अगर तुम हमें हंसा नहीं पाए, तो धरती हमारी!"


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हंसी का महामुकाबला शुरू!

अब "धरती का सबसे बड़ा कॉमेडियन" और "एलियन्स का सबसे बड़ा गंभीर चेहरा" आमने-सामने थे।
मुकाबला सीधा था –
"जो पहले हंसा, वो हारा!"

पहला दौर: एलियन का वार!

एलियन ने एक सुपर बोरिंग स्पीच दी –
"हंसी व्यर्थ है, इसे छोड़ दो! गंभीर रहो, तभी सफलता मिलेगी!"
धरती के लोग ऊब गए, लेकिन हार नहीं मानी।

दूसरा दौर: इंसानों का पलटवार!

धरती के कॉमेडियन ने चुटकुला सुनाया –
"अगर एलियन इतने समझदार हैं, तो UFO की विंडो से बाहर क्यों नहीं देखते?"

एलियन ने खुद को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसका मुँह "ही-ही-ही" कर उठा!
सबने देखा – एलियन की पहली हंसी!


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अंतिम वार और एलियन्स की हार!

कॉमेडियन ने आखिरी चुटकुला फेंका –
"अगर एलियन्स वाकई इतने उन्नत हैं, तो पृथ्वी पर आने के लिए गूगल मैप क्यों नहीं यूज़ करते?"

गंभीरोक्स खुद को नहीं रोक पाया और ठहाके लगाने लगा –
"हा-हा-हा! धरती वाले सच में मज़ेदार हैं!"

युद्ध खत्म! हंसी की जीत हुई!

अब एलियन्स ने धरतीवालों से गुज़ारिश की –
"कृपया हमें भी कुछ अच्छे जोक्स दे दो, हमारे ग्रह पर बहुत बोरियत है!"


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अब अंतरिक्ष में नया नियम बना –

"जहाँ हंसी होगी, वहाँ कोई युद्ध नहीं होगा!"

अब एलियन्स जब भी धरती पर आते, तो सिर्फ एक मकसद से –
"नए चुटकुले सीखने के लिए!"


यह उपन्यास लेखक जेआर'बिश्नोई' द्वारा लिखा गया है, जो राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले हैं। बिश्नोई जी की सोच हमेशा अलग और जरा हटकर होती है। वे न केवल चीजों को गहरे से सोचते हैं, बल्कि हर पहलू को एक अलग दृष्टिकोण से देखने की कोशिश करते हैं, जिससे उनकी लेखनी में हर बार कुछ नया और मजेदार निकलकर सामने आता है। उनका यह अनोखा तरीका उन्हें न केवल एक सृजनात्मक लेखक बनाता है, बल्कि पाठकों को 500 साल बाद की दुनिया की एक रोचक और हास्यपूर्ण झलक भी देता है। उनका उपन्यास "500 साल बाद: हंसी के ग्रह पर" इस अलग सोच का परिणाम है, जिसमें भविष्य, एलियन्स और हंसी के बीच की मजेदार घटनाओं को एक नए और अनूठे अंदाज में प्रस्तुत किया गया है।

कभी-कभी सोचता हूं मैं, कुछ अलग ही करूं,फिर हंसी आई और बोला –"बस तू यही कर,जो तू कर रहा है!" -जेआर'बिश्नोई'




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