एक दूसरे से सभी अलग,
चाहे कितनी हो शिकायत,
साथ साथ हर कदम चलना,
परिवार आगे बढ़ाते रहना।
भरा पूरा जहां खुशियों का,
पर सुकून तो अपनों के साथ,
खुशियां जब हमें करे दरकिनार,
तो दर्द मिटाने बढ़ाए अपने हाथ।
परिवार का साथ जैसे भरा पूरा मेला,
परिवार बिन जिंदगी वीराने का ठेला,
माना बचपन छोड़ जवानी से हुई पहचान,
और जाने कैसे हमें ख़ुद पर हो रहा गुमान।
फ़िर साथ छोड़ नया घोंसला बनाने निकलते,
अपनों के संग बिना कितने हम लड़खड़ाते,
कितना हसी लगे अलग अलग अकेले रहना,
पर एक साथ मिलके हो जितना सब ही रहना।
मजबूरी को कहो हमारे आस पास ना भटके,
परिवार साथ तो क्या लगे हमें जानलेवा झटके,
हर परेशानी का ढूंढ लेंगे मिलकर हम सब हल,
ग़म जितना भी हो संभाल रखेंगे ख़ुशी के चंद पल।
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