सपनों की उड़ान / जेआर'बिश्नोई'

नील गगन में
मस्त मगन,
पंख पसारे
एक पंछी उड़ चला।

न कोई भय,
न कोई बंधन,
सपनों के संग,
सीमा पार चला।

एक उड़ान भरकर
हर सीमा को
कर दिया पार
सहारा
हौसले का बना। 

वो पंछी
न केवल उड़ा 
साथ हमें भी दिखा गया-

सपनों को सजाना,
हौसले से निभाना,
हर बाधा के पार,
मंजिल तक जाना।

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