सपनो की उड़ान /रानी शर्मा

नन्ही चिड़िया पंख फैलाए देख रहीं थी अमबर को,, 
अभी अभी है पंख फैलाए उड़ान भरी है क्षण भर को.. 
इतने में तेज हवा का झौंका आया, झौकै ने कहर बरपाया, 
घरौंदा उजाडा, चिड़िया को गिराया,, तौडी शाखै खुद इतराया.. टूटे जो पंख बदला जौ रूप,, रौई चिड़िया हौके मूक.. 
नन्ही चिड़िया छुपती डोले, जाऊ कहाँ खुद से बोले... 
नहीं नहीं अब डरूँ नहीं, डर डर के मैं मरूँ नहीं.. 
माना रैना घनेरी है, पर सवेरा काफी है,, 
हवा के संग दांव लगाने सपनों की उड़ान बाकी है.. 
आज थोड़ी सी है चुप, थोड़ी सी है खामोश,, 
खुद में भरकर साहस का जोश... 
थोड़ी सी मुस्काती है,, आजमा ती है खुद को वो हवा के संग हौड लगाती है.. 
छोड़ कर उसने सब अफसोस,, 
नापे कितने योजन कितने कोस.. 
नन्ही चिड़िया पंख फैलाए घूर रहीं अब दिनकर को,, 
धरती अमबर सब नापे,, घुम रहीं थीं मन कर वो

Post a Comment

0 Comments