निर्माण/कविता बोरा

भविष्य देश समाज की चेतना का ,
कौतूहल भरे तंत्र के विध्वंश का
 इंसान को इंसानियत से मिलाने का 
समाज की नींव का, निर्माण बहुत जरूरी हैं। 

शब्द - शब्द परिभाषा बनती,
 कण- कण से परमाणु
पथिक को पथ में चलने का,
 बाँधाओं से लड़ , कारवां बनाने का 
प्रयास बहुत जरूरी हैं।

 लड़ते है यहाँ भंगूर की अभिलाषा में,
 विलाप नहीं, स्वयं की नींव का
 सत्य के दर्पण की पहचान और 
धरती से गगन का 'संवाद अभी बाकी हैं। 

क्षितिज तक के मार्ग का 
एक नये जीवन की मर्यादा का..
 भीड़ में खोये को फिर से पाने की अभिलाषा का 
कल्पनाओं की अभिभूति का वर्तमान में मिलना बहुत जरूरी हैं।

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