नशे का छल/जेआर'बिश्नोई'

वो, 
पल भर का सुख
जो, 
मन को भा जाता है। 
नशा, 
एक सपना है
जो, 
आँखों में समा जाता है। 

लेकिन, 
यहीं सुख धीरे धीरे
उसको, 
उलझाता है। 
और, 
इंसान को असली रास्ते से 
दूर, 
भटकाता है। 

वह, 
सोचता है इसको खेल
जो, 
कभी खत्म न होता है। 
स्मृतियाँ, 
ख्वाब और हल्का सा नशा
धीरे धीरे, 
सच्चाई से दूर कर देता है। 

फिर, 
नशे में डूबा 
जिंदा, 
रोता वो इंसान है। 
सच में
मृत-सा हो जाता 
जो, 
खो देता असली पहचान है।

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