परिभाषा बोल/प्रिया शिवानी

कहा गए ओ लोग जो स्वतन्त्रता-स्वतन्त्रता चिलाते है, 
क्या यही हैं तेरी स्वतंत्रता ?
चीख रहा रोम रोम थर थर काप रहा।
सुनने वाले कोई नहीं, चिखने वाले हजार है।
है क्रोध सभी के मन में, इन्साफ दे न पा रहा कोई।
है सवाल हर नारी में क्यों हम ही है शिकारी ?
तू बता आज मुझे आजादी की परिभाषा 
क्यो मूक है बंद तेरे आज, 
क्या तेरी लाडली से प्यारी है तेरी सत्ता ?
नारा दिया था तूने ही बेटी पढ़ाओ, 
जवाब दें उस बाप को आज,
जो पढ़ाया पर तु बचा न पाया।
चीख रही वो मां जिसने नाजो से पाला था,
पूछ रही तुमसे हर नारी क्या अगली बारी हमारी है 
जली है लाखों मुंबतिया क्यो तेरे आज आंख बंद है?
ओ स्वतंत्रता -स्वतंत्रता चिलाने वाले , 
क्या इस लिए हमारे सेनानियों ने दी कुर्बानी है।
तेरे लिए ये छोटी बाते, चल ये भी मैने मान लिया 
पर तू सुन आज मुझे स्वतंत्रता कि परिभाषा बता ।
क्यो तू मौन है, मूक तो खोल , झूठ भी तो बोल।
पर तू सुन आज स्वतन्त्रता की परिभाषा बोल।                        

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