ऋतुपति/पंडित रामदयाल निर्विकार

ग्रीष्म वर्षा शरद ऋतु की
दशा झेलते प्राणी 
पथ पर कांटे लेकर बैठी
जीवन की सखी सहेली आणी 
तापमान हो सुखदाई 
प्रकृति करें बदलाव
मन आनंदित होकर 
यौवन को झलकाता गात्री
नयी नयी फसले उगती 
आमों की बौरों में काणी
जैसे कहती जनमानस से
पेड़ों की डाली बाड़ी 
रोही सी लहराती फसले 
जैसे नाचे राणी 
फिर आएगा अब जल्दी तू
दे बसंत जा तू वाणी

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