हर शाख जो कांपी,हर पत्ता जो गिरा,
धरती ने सहा,एक घाव जो गहरा।
पेड़ कटे,जंगल मिटा,सब सूना हो गया,
हर कोना वीरान,जीवन कहीं खो गया।
क्या यही है विकास,जो प्रकृति को रुलाए,
सरकार को क्यों इसकी सुध न आए?
हर डाल,हर पत्ता अब गवाही देगा,
धरती का दर्द सभी को सुनाई देगा।
'बिश्नोई' कर रहा पुकार कि धरती सजे,
कसम खाओ सब मिलकर कि हर पेड़ बचे।
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