शब्दों का जादू - मैं और वो /आर नीरज जयनारायण

ख़ुदा की कुछ ख़ुशबू, इन लबों में बसी,
जब जुबां से निकलें, तो दिलों में असर हो।
सजाना है इन्हें, बस ख़ामोशी से नहीं,
चाहे दुआ हो, या तुझसे मुलाकात हो।

लहजे में वो ख़ास बात हो जो महसूस हो,
हर एक ज़ुबान में अब ताजमहल बने।
रात की खामोशी में भी गूंजे हमारी तहरीरें,
हर शब्द हो एक नज़्म, दिलों को सुकून दे।

बातें तजुर्बे के साथ आती हैं,
अकसर खामोशी भी बातें करती है।
हमरे लफ़्ज़ों में वो रूमानी असर हो,
जो बेमिट शोर में भी दिल को तसल्ली दे।

बिहारी अन्दाज़, और उर्दू की अदाएं,
शब्दों में वो नशा हो, जो कभी थमे ना।
ग़ज़ल से नसीहत, कविता में उम्मीद,
शब्दों का जादू, दिलों को जोड़े रखे।

इस जादू में खो जाना, जैसे प्यार में खो जाना,
हर एक लफ़्ज़ एक खूबसूरत ख्वाब सा बन जाना।
कभी तल्ख़, कभी मीठा, कभी कुछ और,
शब्दों के इस जादू में, दुनिया की सारी सूरत समाई हो।

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