दिल को छू जाणे वाली सुंदरता हैं मेरे पेड पौधो के पास,
सुकून मिलता हैं गोद में बैठ के प्रकृती के,
महसुस करना इसकी प्रेम को जब रहो तुम उदास...
ना धन दौलत चाहे ये प्रकृती,ना करे कोई स्वार्थ,जो काटने को भी आये इसे,
चुम लेती हैं वो हाथ...
निस्वार्थ प्रेम हैं प्रकृती का,समान हैं सबको अधिकार,
हमारी ख्वाहिशो के खातिर कट रहे पेड बार-बार...
जतन करणी होगी प्रकृती की हर एक व्यवस्था,
रोकणा होगा प्रदूषण को,ना आये कोई समस्या,
समतोल पर्यावरण का ना बना पायेगा कोई,ना काम आयेगी कोई तपस्या...
मेरे माटी की हैं चमक निराली,
कलियों की हैं खुशबू अनमोल,
हर पल पल में दे दे हमें खुशिया,
हैं माँ जैसी प्रकृती बहुमोल....
हर हफ्ते एक पेड लगाये,ये मन में हम ठाण लेंगे,
प्रकृती के अनंत प्रेम के बदले, हम भी ऊसे प्रेम देंगे,
बढाकर सौंदर्य प्रकृती का,सुंदरता का प्रतीक बनाये,
रोखकर प्रदूषण को पर्यावरण का समतोल बनायेंगे...
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