जहाँ हसी खिलती थी अब बस वहा उदासी थहर गई।
माँ की गोद, अब सिर्फ एक खालीपन है,
बाबूजी का आशीर्वाद, अब सिर्फ एक ध्वनि है।
भाई-बहन के खेल, अब बस तस्वीरों में कैद हैं,
वो मस्ती भरे दिन, अब बस यादों में छिपे हैं।
रिश्तों के धागे, टूट कर बिखर गए,
दिल में दर्द का सागर, भर गया है।
परिवार का शब्द, अब बस एक घाव है,
जो हर पल, खुलकर रोता है।
काश, समय को मोड़ सकूँ,
और उन खोए हुए पलों को, वापस ला सकूँ।
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