नए ग्रह पर सूरज भी चुटकुले सुनाता है!

500 साल बाद, जब इंसानों ने एक नए ग्रह पर घर बसाने का फैसला किया, तो वहाँ की सबसे अजीब बात यह थी कि सूरज सिर्फ रोशनी ही नहीं देता था, बल्कि चुटकुले भी सुनाता था!

हाँ, आपने सही सुना! जैसे ही सुबह होती, सूरज की पहली किरण के साथ एक ज़ोरदार चुटकुला गिरता –

"गुड मॉर्निंग ग्रहवासियों! आज का मज़ेदार सवाल – अगर सोलर सिस्टम में सब घूम रहे हैं, तो धरती ही क्यों सबसे ज्यादा थकी रहती है?
क्योंकि… वो सबसे ज्यादा मेहनत करती है!"

लोग सुबह-सुबह हंसी के ठहाकों के साथ उठते और सूरज के नए चुटकुलों का इंतज़ार करते।

सूरज का ‘हास्य तूफान’

एक दिन, ग्रह पर मौसम विभाग ने चेतावनी जारी की – "कल सूरज ज़्यादा तेज़ हंसी बिखेर सकता है, सावधान रहें!"
अगले दिन, सूरज इतना हंसा कि पूरे ग्रह पर रोशनी नहीं, बल्कि ठहाके गूंजने लगे। लोग काम-धंधा छोड़कर पेट पकड़कर हंस रहे थे।

एक वैज्ञानिक ने गुस्से में सूरज से पूछा – "तुम इतनी हंसी क्यों फैला रहे हो?"
सूरज ने जवाब दिया – "भाई, 500 साल से जल ही तो रहा हूँ, अब हंसने का मन कर गया!"

सूरज का ‘गूगल चुटकुले’

सबसे मज़ेदार बात तो यह थी कि सूरज अब हर दिन नए चुटकुले सुनाने के लिए गूगल एलियन से मदद लेने लगा था।
एक दिन सूरज ने इतना लाजवाब चुटकुला सुनाया कि पूरा ग्रह ठहाके लगाने लगा –

"अगर रोशनी में इतनी ताकत होती, तो बिजली का बिल क्यों आता?"

लोगों ने यह सुनते ही अपने घरों की लाइट बंद कर दी और सूरज की रोशनी में बैठकर चुटकुले सुनने लगे।

सूरज की छुट्टी और ग्रह पर अंधेरा

एक दिन, सूरज ने हड़ताल कर दी और कहा – "अब मैं थक गया हूँ, आज चुटकुले नहीं सुनाऊंगा!"
ग्रहवासी परेशान हो गए, चारों तरफ अंधेरा छा गया। लोग दुखी होकर रोने लगे।

एक छोटे बच्चे ने चिल्लाकर कहा – "सूरज अंकल, प्लीज़ वापस आ जाओ, हमें रोशनी नहीं, हंसी चाहिए!"
सूरज ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया – "अच्छा ठीक है, पर शर्त ये है कि हर कोई सुबह उठते ही एक चुटकुला सुनाएगा!"

बस, तभी से उस ग्रह पर नया नियम बना – "सुबह की पहली किरण के साथ हर कोई हंसी में डूब जाएगा!"

अब वहाँ के लोग कहते हैं –
"हमारे ग्रह पर सुबह-सुबह कॉफी नहीं, चुटकुलों का नशा चढ़ता है!"


यह उपन्यास लेखक जेआर'बिश्नोई' द्वारा लिखा गया है, जो राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले हैं। बिश्नोई जी की सोच हमेशा अलग और जरा हटकर होती है। वे न केवल चीजों को गहरे से सोचते हैं, बल्कि हर पहलू को एक अलग दृष्टिकोण से देखने की कोशिश करते हैं, जिससे उनकी लेखनी में हर बार कुछ नया और मजेदार निकलकर सामने आता है। उनका यह अनोखा तरीका उन्हें न केवल एक सृजनात्मक लेखक बनाता है, बल्कि पाठकों को 500 साल बाद की दुनिया की एक रोचक और हास्यपूर्ण झलक भी देता है। उनका उपन्यास "500 साल बाद: हंसी के ग्रह पर" इस अलग सोच का परिणाम है, जिसमें भविष्य, एलियन्स और हंसी के बीच की मजेदार घटनाओं को एक नए और अनूठे अंदाज में प्रस्तुत किया गया है।

कभी-कभी सोचता हूं मैं, कुछ अलग ही करूं,फिर हंसी आई और बोला –"बस तू यही कर,जो तू कर रहा है!" -जेआर'बिश्नोई'


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