500 साल बाद, जब समय की गणना भी टेक्नोलॉजी के सहारे होने लगी, तो एक अजीब समस्या खड़ी हो गई – "समय को आगे बढ़ाएं या पीछे?"
हुआ यूँ कि वैज्ञानिकों ने एक नई "टाइम कस्टमाइज़ेशन" तकनीक विकसित कर ली थी, जिसमें हर इंसान अपने हिसाब से समय को आगे-पीछे कर सकता था। किसी को सोमवार से बचना हो तो वो सीधे शुक्रवार पर जा सकता था, और जिसे वेतन का दिन जल्दी चाहिए, वो एक हफ्ते आगे कूद सकता था।
लेकिन जब यह सिस्टम लागू हुआ, तो दुनिया में अजीब उलझनें शुरू हो गईं।
- एक आदमी लंच टाइम से 5 मिनट पहले पहुँच गया, लेकिन उसका दोस्त 10 मिनट पीछे रह गया।
- शादी में दूल्हा मंडप में 2 घंटे पहले पहुँच गया, और दुल्हन 3 घंटे लेट आई।
- ऑफिस में बॉस ने मीटिंग सुबह 10 बजे रखी, लेकिन कर्मचारी 9:59 पर अपना समय आगे बढ़ाकर छुट्टी पर चला गया!
यह तो कुछ भी नहीं था, सबसे मजेदार तो तब हुआ जब एलियन्स ने पृथ्वी पर आकर पूछा – "क्या तुम इंसानों को सच में समय की जरूरत है? हमारे ग्रह पर तो हम समय को देखकर नहीं, भूख लगने पर खाते हैं!"
अब इंसानों को समझ नहीं आ रहा था कि सही समय कौन सा है? लोग टाइम ट्रैवल करने लगे, कुछ लोग 3000 साल आगे चले गए और कुछ 1000 साल पीछे। एक आदमी तो गलती से डायनासोर के जमाने में चला गया और वापस आने के लिए टाइम मशीन ढूंढने लगा।
समय की यह उलझन इतनी बढ़ गई कि सरकार को "समय नियंत्रण विभाग" खोलना पड़ा, जिसने यह नियम बनाया कि कोई भी हफ्ते में सिर्फ दो बार ही समय बदल सकता है, वो भी सरकारी अनुमति से।
लेकिन तब भी समस्या हल नहीं हुई। लोग अब नए तरीके निकालने लगे। एक आदमी अपनी टाइम सेटिंग को बदलकर हर सोमवार छुट्टी कर लेता था। ऑफिस वालों ने उससे पूछा – "तू हर सोमवार कहाँ चला जाता है?" उसने हंसते हुए जवाब दिया – "समय की उलझन में फंसने से पहले ही मैं उसे बदल देता हूँ!"
अब दुनिया में हर इंसान अपनी ही घड़ी सेट कर रहा था, और सरकार को एक नया नियम बनाना पड़ा –
"जो जैसा समय चाहता है, वैसा ही जिए, लेकिन पिज्जा हमेशा 30 मिनट में ही डिलीवर होगा!"
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