परिवार/वर्षा सिंह

एकल परिवार की चाहत सबको,
सयुंक्त परिवार की चाहत ना किसी को,
जिस माँ बाप ने बचपन संवारा,
वो ही दर दर भटकते है,
एक वक्त की रोटी के लिए तरसते है,
बच्चे शौक से अपने अरमान पूरे करते,
माँ बाप वृद्धाश्रम जाने को मजबूर होते है,
बुजुर्गों का सम्मान कहीं छिन सा गया है,
माँ बाप होते थे भगवान लेकिन
अब माँ बाप बच्चों लिए माँ बाप ना रहे,
काश ! फिर से वो संस्कार लौट आते,
माँ बाप घर पर खुश रहते,
जिस घर में माँ बाप खुश रहते,
उस घर में स्वयं भगवान वास करते ,
एकल परिवार ने छीन लिया माँ बाप से उनकी संतान ।

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