दुबारा हो जाए /गौरव अग्रवाल "मन"

हमने कब चाहा कि वो शख़्स हमारा हो जाए,
बस इतना दिख जाए कि आंखों का गुज़ारा हो जाए,
और हम जिसे अपने पास बिठा लें,
वो शख़्स दूर हो जाता है,
और तुम जिसे हाथ लगा दो,
वो तुम्हारा हो जाता है,
और तुम्हे लगता है न 
कि तुम जीत गए हो मुझसे,
है अगर यही बात,
तो फिर ये खेल दुबारा हो जाए....

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