नकाब/कवीता संग्रस कन्हेरीकर

परीघ में रहकर भी 
खाई का एहसास होता है । 
नही जीना हमे अभी ,
डुब जाने का आभास होता है । 

छलनी हुए दिल में । 
जज़्बात भी कहीं खो गए। 
छाँव नही रही तो ,
घाव भी बढ गए। 

राह को मोड़ना था । 
हम मोड पर रुक गए। 
उसूलों को मंजुर नही था।
अपने-आप से जुड गए। 

दिल से समझौता
करते करते थक गए।
विचार का समर्थन झूठा, 
नकाब को अपनाते गए।  

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