ज़िंदगी में कोई दो पल मेरे पास न बैठा, आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे, कोई तोहफा न मिला आज तक, आज फूलों में फूल दिए जा रहे थे, तरस गए थे हम किसी एक हाथ के लिए, आज कांधे पर कांधे दिए जा रहे थे, आज पता चला कि मौत कितनी हसीन होती है, कमबख्त हम तो यूं ही ज़िंदगी जिए जा रहे थे.....
हमने कब चाहा कि वो शख़्स हमारा हो जाए, बस इतना दिख जाए कि आंखों का गुज़ारा हो जाए, और हम जिसे अपने पास बिठा लें, वो शख़्स दूर हो जाता है, और तुम जिसे हाथ लगा दो, वो तुम्हारा हो जाता है, और तुम्हे लगता है न कि तुम जीत गए हो मुझसे, है अगर यही बात, तो फिर ये खेल दुबारा हो जाए....
मुद्दतों बात आज फिर आमना सामना हो गया, जाना पहचाना शख़्स आज फिर अनजाना हो गया, उसके चेहरे पर एक अनजाना सब दर्द जरूर था, हां आज उसकी ख़ामोशी में एक अजीब सा शोर जरूर था... देख कर भी हमें ऐसे देखा जैसे जानते ही नहीं, पास से कुछ यूं निकल गए जैसे पहचानते ही नहीं, दिल और जुबान में तालमेल जरूर कुछ कम था, हां आज उसकी ख़ामोशी में एक अजीब सा शोर जरूर था... पुराने जख्मों को तो हरा करके चले गए, न जाने कितने टूटे ख्वाब वह दिल में फिर जगा गए, एहसास इस बात का उनको जरा भी नहीं था हां आज उसकी ख़ामोशी में एक अजीब सा शोर जरूर था... कभी एक पल भी नहीं गुजरता था …
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