किस बात की आजादी मना रहे हो ?
क्या मिल चुका है ऐसा जो दुनिया को दिखा रहे हो?
स्वतंत्र हो गए अंग्रेजों से बरसों पहले
क्या इसी बात का जश्न अब तक मना रहे हो?
नहीं बचा पाए अपनी बेटियों को देश के ही लोगों से
तो किस बात की दुर्गा अष्टमी मना रहे हो?
मौन होकर बैठी है सरकारें कई सालों से
तो किस हक से लाल किले पर तिरंगा फहरा रहे हो?
क्या ही उम्मीद करेगी सुरक्षा की अब साधारण लड़कियां?
जब तुम भगवान के समान एक डॉक्टर को भी नहीं बचा पा रहे हो
निकली होगी घर से वह अपने सपनों को पूरा करने
उसकी हालत देख कितनी ही बेटियों के सपने घर में ही दफना रहे हो
उठा भी लगी नारी अपनी ही सुरक्षा में शस्त्र
मगर उसके विरोध में प्रदर्शन करने वाली लड़कियों को भी तुम नोच कर खा रहे हो
यदि चाहते हो बन ही जाए यह पूरी तरीके से पुरुषों का देश
तो किस बात के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे लगवा रहे हो?
स्वतंत्र भारत के लिए पहले इसे दरिंदों से मुक्त कराना होगा।
सही मायने में बेटियों के लिए तब से ही आजादी का जमाना होगा।।
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