बिगड़ता पर्यावरण/कवीता संग्रस कन्हेरीकर

जल रहे है जंगल 
पिघल रहे है पहाड़ 
न जाने किस तरह की है 
ये प्रकृति की दहाड़ |

ये जहान, ये हरियाली 
ये पेड़, ये आसमान की लाली 
भरा पूरा कुदरत-ऐ-मंज़र मत बिगाड
न जाने किस तरह की है 
ये प्रकृति की दहाड़ |

चलो बचाके रखे बच्चों के लिए 
छोटीसी दुनिया 
हमने तो जी ली हमारी ज़िंदगी 
उनके लिए ना छोडे गंदगी 
बहा ना ले जाए 
सबकुछ तूफान और बाढ 
न जाने किस तरह की है 
ये प्रकृति की दहाड़ |

दुशीत पर्यावरण 
प्लास्टिक का कहर 
रोम रोम कांपता है 
देखके जानवरो के हाल 
मानव जाती का कांड 
न जाने कि  तरह कि है 
ये प्रकृती की दहाड । 

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