कल्पना कि कलम से ,
उतारती हुँ कागजपर ,
मेरा सुकुन मेरा प्यार हल्के से ।
मेरे शब्द पहुंच सके सब तक ,
जान ले कविता में छुपे दर्द को ।
जमीन से लेकर क्षितीज तक ।
तब मनाएँ अपनी कामयाबी को ।
हर दिन घटती है घटनाएं
निसर्ग बदल रहा करवटें
गीर रही है मर्यादा कि चट्टानें
सुकून तब जब भ्रष्टाचार हटे
नही देख सकते हत्या जानवरों कि ।
लढ रहे समाज सेवक देखकर ,
आती है सुघंद मेहकि मेहकि ।
सुकून होता है कुछ बचाकर ।
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