शब्द/कवीता संग्रस कन्हेरीकर

भावनांओ को शब्दों में पिरोकर ,
कल्पना कि कलम से ,
उतारती हुँ कागजपर ,
मेरा सुकुन मेरा प्यार हल्के से । 

मेरे शब्द पहुंच सके सब तक ,
जान ले कविता में छुपे दर्द को ।
जमीन से लेकर क्षितीज तक ।
तब मनाएँ अपनी कामयाबी को ।

हर दिन घटती है घटनाएं 
निसर्ग बदल रहा करवटें 
गीर रही है मर्यादा कि चट्टानें 
सुकून तब जब भ्रष्टाचार हटे 

नही देख सकते हत्या जानवरों कि ।
 लढ रहे समाज सेवक देखकर ,
आती है सुघंद मेहकि मेहकि ।
सुकून होता है कुछ बचाकर ।

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