शब्दों का जादू/अभय प्रताप सिंह

अनुशासन की दुनिया में शब्दों का बड़ा मोल है, 
क्या, क्यूँ, कब और कितना बस इतना ही खेल है, 
सम्मान, अपमान सब अंग हैं शब्दों के मायाजाल के, 
शब्दों पर ही निर्भर करती अब रिश्तों की रेल है। 

शब्दों पर मर-मिटने का अपना इतिहास पूराना है, 

द्रौपदी के शब्दों से ही कुरुक्षेत्र की नींव पड़ी,
कर्ण के शब्दों ने बताया मित्रता है सबसे बड़ी ,
कुरुक्षेत्र में फिर माधव ने शब्दों से गीता-सार कहा,
हुई धर्म की स्थापना तब विजय स्तंभ भी हुई खड़ी ।

पद्मिनी के शब्दों पर गोरा के धड़ ने युद्ध किया, 
अक़बर के सन्धि शब्दों ने महाराणा को क्रुद्ध किया, 
तिलक, गांधी के शब्दों ने पूरे देश को प्रतिबद्ध किया, 
स्वराज के शब्दों ने फिर अंग्रेजों को करबद्ध किया। 

शब्दों ने इतिहास रचा, सपनों को आकार दिया, 
शिक्षा की रखी नींव, सुदृढ समाज का निर्माण किया, 
आपस में जुड़कर रहने का शब्द ही एकमात्र साधन है, 
जिसने जैसा किया प्रयोग उसको वैसा सम्मान मिला। 

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