एक मेरी सरजमीं, तो दूजा मेरा आसमां,
दोनों के सजदे में मैं पढू रब का कलमा,
दोनों हमारे उनके बिन ना जहां मेरा पूरा,
थाली में परोसा प्यार और डांट पूरा पूरा।
पापा की प्यारी लगती पुकार,
मां साक्षात करती लाड दुलार,
एक की आंखे हमारे लिए नम,
एक मन ही मन में छुपाए गम।
एक के बिन नाम हमारा अधूरा,
एक के साए में बचपन गुजारा,
एक की थाम उंगली हम चले,
एक घर में इंतजार हमारा करे।
कभी कबाड़ दिखे जिनका गुस्सा,
डांट हमें गुजारे नम आंखों से रात,
सख्त होना मेरी मां को आया नहीं,
पापा को प्यार दिखाना भाया नहीं।
हर बार गलती पर पापा से शिकायत,
मां और हमारी दोनों की एक ही आदत,
पापा बिचारे हमारी सब सुनते शांति से,
बिगड़ी हर बात सुलझाते बड़े प्यार से।
पापा लेकिन जब थे हम खुशियों पे थे सवार,
क्या बिशाद की दर्द हमें दूर से लगाते पुकार,
अब जहां मेरा पापा बिन अधूरा अधूरा लगता,
मां पास लेकिन पापा का ना होना हमें खलता।
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