इस पथ में जो मिला नहीं मुझे/दिव्या त्रिपाठी

कब थे मेरे  अपने मेरे साथ 
ना कोई मित्र ना वैरी,  
  मैं और मेरी राह में
 भीड़ ना कल थी 
मेरी ना आज हैं वह गिरना उठाना,
 जीवन तरंगों सा  मेरा था 
कौन सा मन मुस्कुराया होगा मेरे साथ ,
मेरे हृदय ने कभी किसी का हृदय नहीं दुखाया था
 सब अपने जीवन में रमते हैं,
कुछ क्षण में ये  जग मेरा होकर
कुछ क्षण के लिए ये जग पराया हो जाता है,
मेरे ही अपेक्षाओं के भंवर गहरे ,
वह जोड़ना वह तोड़ना है वह भी बंधन मेरा था 
कब था जग मेरे साथ 
कब मैं थी जग के साथ कब थे
   ये अपने मेरे अपने? 
                             

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