सपनों की उड़ान /प्रेम पी भारद्वाज

आज मुझे अपने बगीचे में नया मेहमान मिला,
नन्हे पंख फैलाए हुए
अपनी नन्ही चोंच से कोई तिनका लिए 
एक डाल से दूसरी डाल पे फुदक कुछ ढूंढ़ रहा हो जैसे
शायद बरसाती मौसम में अपना आशियाना बनाने लगा था
उसने तिनका रखा ही था कि तेज हवा ने उसे उड़ा दिया
हवा का भी जोर तेज था और हल्की बारिश भी
पर वो पंछी फिर से गया और फिर तिनका लाया 
हवा ने अपने तेवर जरा भी ना बदले 
और ये सिलसिला ना जाने कब तक चलता रहा
बारिश तेज़ हुई और में वापस अपने कमरे में चली आई थी
एक हफ्ते बाद सुबह की चाय मै बगीचे में लिए गई 
तो कुछ चेहचहती आवाज़ों ने मेरा ध्यान खींचा
एक डाली पे छोटे से घोसले में कुछ पंछी के बच्चें थे
वाकई उस पंछी ने हार ना मानी और 
अपना घर बना ही लिया 

उस दिन एक बात समझ मे आयी
सपनों की उड़ान कभी आसान नहीं होती,

मंजिल पाने के लिए चुनौतियां को जीता जाता है,
जो बिना थके, बिना रुके, लगातार जारी रहती है।   
उड़ान उसी की सफल होती है
जिसके हौसले मजबूत होते हैं।

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