कहा गए ओ लोग जो स्वतन्त्रता-स्वतन्त्रता चिलाते है, क्या यही हैं तेरी स्वतंत्रता ? चीख रहा रोम रोम थर थर काप रहा। सुनने वाले कोई नहीं, चिखने वाले हजार है। है क्रोध सभी के मन में, इन्साफ दे न पा रहा कोई। है सवाल हर नारी में क्यों हम ही है शिकारी ? तू बता आज मुझे आजादी की परिभाषा क्यो मूक है बंद तेरे आज, क्या तेरी लाडली से प्यारी है तेरी सत्ता ? नारा दिया था तूने ही बेटी पढ़ाओ, जवाब दें उस बाप को आज, जो पढ़ाया पर तु बचा न पाया। चीख रही वो मां जिसने नाजो से पाला था, पूछ रही तुमसे हर नारी क्या अगली बारी हमारी है जली है लाखों मुंबतिया क्यो तेर…
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