मैं वाणी हूँ, जो सत्य के स्वर गाती हूँ, अंधियारे में दीपक बन, रोशन कर जाती हूँ। गगन भी झुक जाए मेरे स्वरों की गूंज तले, मैं वह गीत हूँ, जो हृदय में जोश भरे। मैं वह शब्द हूँ, जो अश्रु से अमृत बन जाता है, जहाँ टूटती हैं हिम्मतें, वहाँ संबल बन जाता है। संघर्षों से सीखा है मैंने इतिहास रचाना, बधाओं को पिघलाकर, स्वप्न सजाना। मेरे शब्द वो आग हैं, जो चिंगारी से शोला बन जाएँ, मेरे भाव वो नदी हैं, जो सागर में जा समाएँ। वीरों की हुंकार हूँ मैं, क्रांति की पुकार हूँ मैं, दुश्मन के किले गिरा दूँ, ऐसी ललकार हूँ मैं। मैंने गढ़ी वो गाथाएँ, जो अमर हुईं हर युग…
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