स्त्री हौसले की उड़ान/काजल शर्मा

स्त्री हारती नहीं, वो तो उड़ान है,
सपनों से भरी उसकी एक पहचान है।
जहाँ ठहराव नहीं, बस चलना है उसे,
हर अंधेरे में रोशनी बनना है उसे।

बाधाएँ चाहे लाख आएं राहों में,
वो तो पर्वत सी खड़ी है हवाओं में।
गिरती है, सँभलती है, उठती फिर,
हर दर्द में छिपा है उसका स्वर्ण मंज़र।

वो तो आसमान छूने की ललक है,
कठिनाइयों में भी मुस्कान की झलक है।
दुनिया के हर डर को ललकारती,
हौसलों से अपने सपने सँवारती।

चूल्हे की आग हो या दफ्तर का मैदान,
हर जगह उसके संघर्ष की गूँज है महान।
वो माँ है, बेटी है, प्रेम की जुबान है,
स्त्री हारती नहीं, वो तो हौसले की उड़ान है।

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