स्त्री हार नहीं, हौसले की कहानी /काजल शर्मा

हार कहाँ अब उसका हिस्सा है,
वो मेहनत की परिभाषा है।
सपनों के संग चलती जाती,
हर बाधा को खुद ललकारती।

न रुकती, न थमती, न झुकती,
आग है वो, जो भीतर सुलगती।
हर दिन नए आसमान बनाती,
अपनी उड़ान से दुनिया हिलाती।

संघर्ष की राह को उसने चुना,
हर दर्द को सहकर खुद को बुना।
आँसू नहीं, अब उसकी पहचान,
है उसका जुनून और स्वाभिमान।

वो अबला नहीं, वो सबला है,
जो चाहे, वो कर दिखाने वाली शक्ति है।
आज की स्त्री हारती नहीं,
अपने सपनों को सच कर दिखाती यही।

Post a Comment

0 Comments