तू मेरा सुकून था,
जैसे चांदनी रातों में ठंडी हवाओं का एहसास,
जैसे थके हुए मुसाफिर को मिल जाए छांव,
जैसे बिखरे ख्वाबों को मिल जाए विश्वास।
तेरी बातें थीं जैसे
सन्नाटे में कोई मीठी धुन गुनगुनाए,
तेरी हंसी थी वो उजाला,
जो अंधेरों में राह दिखाए।
तू मेरा सुकून था,
हर उलझन का जवाब,
हर दर्द का मरहम,
हर सवाल का ख्वाब।
पर अब,
वो सुकून कहीं खो गया है,
जैसे समंदर से कोई लहर लौटकर न आए,
जैसे बारिश का वो पहला कतरा
धरती तक पहुंचने से पहले ही सूख जाए।
तेरी कमी,
अब हर सुकून को अधूरा बना देती है,
पर फिर भी,
तेरी यादें दिल को थोड़ा सहला देती हैं।
तू मेरा सुकून था,
और शायद हमेशा रहेगा,
तेरे बिना ये दिल भले तन्हा हो,
पर तुझसे जुड़ी हर चीज़ इसे जिंदा रखेगा।
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