दहेज/क़मर शेख

फिर एक बाप का लूटा सम्मान ,फिर छीन गया उसके सर से आसमान, सुना है बेटी ब्याह ही गई है,
 लिया है कर्ज पता नहीं कब छूटेगी जान... कमियां गिनाई जा रही है खाने में ,पूछ रहे क्या दिया दहेज बेटी ब्याहने में, किसी के दिल का टुकडा लिए जा रहा है, कोहिनूर देने वाले को गरीब बताया जा रहा है. मांग दहेज अपनी औकात दिखाने वाले, क्या जाने बेटी क्या है यह जालिम जमाने वाले .
सौंप दी जिसने अपनी पूरी दौलत, बदले में उसने  पाई हमेशा ही जिल्लत,
 चाहे बहू ,चाहे बेटी सब एक समान, समझो इस बात को समझो यह प्रेम पुराण .
एक बेटी  गई तो दूजी बेटी घर आयेगी ,हर घर में बार-बार यहीं प्रथा अपनाई जायेगी.

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