वह शब्द नहीं वह भाव नहीं
अब कहीं कोई दोहराव नहीं
क्या कुछ तो बदल गया है पर
इन सब में कुछ बदलाव नहीं
एक विकल वेदना प्राणों की
एक शब्दों का अभिनय मंचन
एक अधरो की मुस्कान रची
एक अंतर मन का वह क्रन्दन,
क्रंदन जिसमें तुम बसे रहे
हर शब्द भाव में रुके रहे
बिछड़न जिसमें तुम चले गए
आए थे सिर्फ घड़ी क्षण को
मेरे अंतर्मन के तट पर
वह कौन परिस्थिति थी जिसमें
तुम आए और बस ठहर गए
कितने ही मौसम गुजर गए
कितने ही मौसम गुजर गए,,,
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