रात हुई लोग फोन में डूब गए,
अब छत से कौन देखता है तारे।
भोर में सोए दोपहर में जगे,
सुबह का सूरज कौन निहारे।
हर दर्द कैद है घरों के आंगन में,
अब कौन बैठता है दरिया किनारे।
सभी अपने ही खड़े हैं जीवन युद्ध में,
अब किससे जीतें किससे हारें?
नई पीढ़ी है नएपन में व्यस्त रहती है,
अब बुजुर्गों के साथ कौन वक्त गुजारे।
ये पैसे, ये गहने, ये मकान, सब किसलिए?
चले जाना है जब सबको हाथ पसारे।
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