ऐसा हो संसार/डॉ विभव सक्सेना

जहाँ चारों ओर बस खुशहाली का डेरा हो,

अपनेपन की बात हो कहीं न तेरा मेरा हो।


धर्म और जाति की दीवारें न खड़ी हों जहाँ,

भाषा या क्षेत्र का भेदभाव भी न दिखे वहाँ।


न चोरी हो न लूट रिश्वतखोरी न ही भ्रष्टाचार,

बुरे कामों से दूर रहें सब कुछ ऐसा हो संसार।


न जुल्म हो बेगुनाह पे न अबला आबरु खोय,

हर बेसहारा पाये सहारा कुछ ऐसा अब होय।


भूख से कोई तड़पे नहीं सबकी भरी थाली हो,

हर हाथ में रोजगार हो ऐसी बात निराली हो।


आतंकवाद को शरण न दे अब कोई भी देश,

हर कोने में सुनाई देता हो शांति का ही संदेश।


प्रकृति से खिलवाड़ न हो दूर अब प्रदूषण हो,

पृथ्वी बने हरीतिमा और स्वच्छ पर्यावरण हो।


चैन से कटे दिन और सुकून की हर रात हो,

ऐसा हो संसार जिसमें मानवता की बात हो।

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