जब देखता हूँ सर्वत्र ही असत्य अन्याय और भ्रष्टाचार, तब ढूंढता हूँ मैं प्रायः सत्य शान्ति स्नेह और सदाचार। आज हर व्यक्ति दिखाई देता है स्वार्थसिद्धि करते हुए, कैसा समय है जिसमें सही आदमी रहता है डरते हुए। माता पिता गुरु हो या नारी किसी का कोई मान नहीं, क्यों ऐसा है मानव कि अपनी मानवता का भान नहीं। निर्धन और निर्बल का कोई भी सहायक नहीं है यहाँ, सामर्थ्यवान को इस युग में दोष देता भी है कोई कहाँ? भौतिकता की अंधी दौड़ में प्रकृति की कोई चिंता नहीं, स्वार्थी मनुष्य लालसा पाले अपने पाप भी गिनता नहीं। आए दिन प्राकृतिक आपदा और रोगों से त्रस्त रहत…
मैं देखता हूँ जब कुछ लोगों को, अपनी जिंदगी में खुश और मस्त... तो अक्सर सोचता हूँ कि क्यों करूँ? अपनी जिंदगी से कोई भी शिकायत... वो लोग जो कम पैसों में भी खुश हैं, वो जिन्हें महंगे कपड़ों की चाह नहीं, बिना मोबाइल भी व्यस्त रहते हैं जो, किसी की तरक्की से कोई जलन नहीं... ऐसे लोग जो आज भी मेहमान को, भगवान का ही दर्जा दिया करते हैं, जिन्हें प्यार के दो बोल बोलकर ही, मानो हर कोई अपना बना सकता है .... आज की इस मतलबी दुनिया में भी, ऐसे लोगों का होना वाकई बड़ी बात है, कोई उन्हें कुछ भी कहे या समझे मग़र, मेरी नजर में तो ऐसे लोग फरिश्ते ही हैं...…
जिस वसुंधरा पर ईश्वर ने भी बारम्बार स्वयं जन्म लिया है, देखो उस पृथ्वी का मानव ने आज यह कैसा हाल किया है? मनुष्य के पापों का दिन और रात बेबस धरती बोझ ढोती है, और उसके अत्याचारों से पीड़ित होकर वह निरन्तर रोती है। पुकारती है पृथ्वी कि मानव अब तो कुम्भकर्णी नींद से जागे, प्रकृति से जुड़ जाए वह हृदय से और स्वार्थसिद्धि को त्यागे। यदि मनुष्य इस वसुन्धरा की रक्षा करने में सफल हो जाएगा, तब ही सच्चे अर्थों में उसका अपना भी अस्तित्व बच पाएगा। सो पहले जैसी हो यह पृथ्वी सारी और उसका दोहन बंद हो, नदियाँ कल-कल बहें यहाँ जीवों का विचरण भी स्वच्छंद हो। वृक्…
हिन्दी तो मात्र एक भाषा ही लगती है, भला कहाँ यह अब मातृभाषा रह गई है? अपनों ने ही जिसको दोयम दर्जा दिया, उस बेटी की तरह ही सब कुछ सह गई है।। वैसे तो 1949 में ही राजभाषा बन गई, पर आज तक राष्ट्रभाषा न बन सकी है। इतने सालों से भटक रही है सम्मान को, अच्छा यही है कि अब तक न थकी है।। मैकाले के मानस पुत्रों ने तो सदा से ही, हिन्दी भाषा को जमकर खूब सताया है। जो बोलते और लिखते हैं हिन्दी गर्व से, उनका देश में ही गया उपहास बनाया है।। विश्व में हर देश जब अपनी मातृभाषा को, साथ लेकर प्रगति-पथ पर बढ़ सकता है। तो हिन्दी को सर्वव्यापक बनाने के बाद, कैसे न भ…
प्रेम एक भाव है मौन शांत स्थिर स्पर्शहीन-सा, जीवन में रस और सुगंध देकर भी गन्धहीन-सा। शाश्वत है कभी किसी भी स्थिति में मरता नहीं, है जगत में कौन ऐसा जो कभी प्रेम करता नहीं? आकर्षण स्नेह और मोह से पल्लवित होकर प्रेम, एक दिन जीवन की आवश्यकता-सी बन जाता है। वह पूर्ण और साकार हो सके तो इससे अच्छा क्या, किन्तु अपूर्ण हो तो भी बलिदान की उपमा पाता है।
किसी के लिए पुख्ता पहचान है दोस्ती, किसी के लिए आन बान शान है दोस्ती। निभाया जाए अगर दिल से इस रिश्ते को, तो सचमुच दोस्तों के लिए जान है दोस्ती। कुछ लोग खिलवाड़ करते हैं दोस्तों के साथ, तो कुछ लोगों के लिए वाकई ईमान है दोस्ती। मैंने देखा है अपनों को भी साथ छोड़ते मगर, जो हर हाल में साथ दे वो भगवान है दोस्ती। वो जो आपकी नाराजगी भी सह ले हंसकर, जो जताया ना जाए ऐसा एहसान है दोस्ती। लोग तो दूसरों को तकलीफ देकर खुश होते हैं, मगर दोस्त की खुशी के लिए कुर्बान है दोस्ती। कोई निभाता है तो कोई तोड़ देता है लेकिन, रहता है सबके दिल में वो अरमान है दोस्ती।।
जहाँ चारों ओर बस खुशहाली का डेरा हो, अपनेपन की बात हो कहीं न तेरा मेरा हो। धर्म और जाति की दीवारें न खड़ी हों जहाँ, भाषा या क्षेत्र का भेदभाव भी न दिखे वहाँ। न चोरी हो न लूट रिश्वतखोरी न ही भ्रष्टाचार, बुरे कामों से दूर रहें सब कुछ ऐसा हो संसार। न जुल्म हो बेगुनाह पे न अबला आबरु खोय, हर बेसहारा पाये सहारा कुछ ऐसा अब होय। भूख से कोई तड़पे नहीं सबकी भरी थाली हो, हर हाथ में रोजगार हो ऐसी बात निराली हो। आतंकवाद को शरण न दे अब कोई भी देश, हर कोने में सुनाई देता हो शांति का ही संदेश। प्रकृति से खिलवाड़ न हो दूर अब प्रदूषण हो, पृथ्वी बने हरीतिमा और स…
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