धरती माँ/मोहिनी

हम सब मिलकर के अवनि को

सुन्दर सफल बनायेंगें ।

एक-एक पौधा  रोपेंगें  हर दिन

जीवन सरल बनायेंगे।।

सूनी गोदी को भरकर, 

हम इसको चमन बना लेंगें ।

 पर्वत, झरने, झीलें, नदियाँ

हम सबको पुनः बचा लेंगें ।।

 जो हुआ गुनाह है हमसे

 हम उसको पुनः सुधारेंगे ।

तुम करो शुरु, एक दिन फिर से 

हम फिर से धरा बचा लेंगे।।

और ये जो सूना-सूना  सा आँगन है 

हम मिलकर इसे संजोयेंगें ।

जो हैं अपने आस-पास 

हम सबको सजग बनायेंगें।।

 नीले नभ में आहें भरकर

जीवन को सफल बनायेंगें। 

कोना-कोना धरती-अम्बर 

हम फिर से नया बना लेंगें।।

जो देगी धरा हमें वापस

उसमें संतोष मना लेंगे।।" 

                      

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