हम सब मिलकर के अवनि को
सुन्दर सफल बनायेंगें ।
एक-एक पौधा रोपेंगें हर दिन
जीवन सरल बनायेंगे।।
सूनी गोदी को भरकर,
हम इसको चमन बना लेंगें ।
पर्वत, झरने, झीलें, नदियाँ
हम सबको पुनः बचा लेंगें ।।
जो हुआ गुनाह है हमसे
हम उसको पुनः सुधारेंगे ।
तुम करो शुरु, एक दिन फिर से
हम फिर से धरा बचा लेंगे।।
और ये जो सूना-सूना सा आँगन है
हम मिलकर इसे संजोयेंगें ।
जो हैं अपने आस-पास
हम सबको सजग बनायेंगें।।
नीले नभ में आहें भरकर
जीवन को सफल बनायेंगें।
कोना-कोना धरती-अम्बर
हम फिर से नया बना लेंगें।।
जो देगी धरा हमें वापस
उसमें संतोष मना लेंगे।।"
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