व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी
भटक रही होगी कहाँ...
भटक रही होगी कहाँ,मिथिला की राजकुमारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी...
बह रही है अश्रु धारा,नैनों से श्री राम के
गूँज रही है चहु दिशाएँ,सीता सीता नाम से
अधर हैं काँपते और छाई घनी अंधियारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी
भटक रही होगी कहाँ...
भटक रही होगी कहाँ,मिथिला की राजकुमारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी...
सिसक रही है वाटिका में,बैठी राम की सिया
विरह की पीर है कितनी,बहती नीर ने बता दिया
आये न जो रघुनाथ तो प्राण त्यागने को हारी
व्याकुल हैं राम कैसी होगी सीता हमारी
भटक रही होगी कहाँ...
भटक रही होगी कहाँ,मिथिला की राजकुमारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी...
वन-वन भटक रहे हैं राम,सिया खबर पाने को
सूख गए है कंठ और,भूल गए हैं मुस्कुराने को
कांटों में धरते पाँव लेकिन बेसुध है पाँव बिचारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी
भटक रही होगी कहाँ...
भटक रही होगी कहाँ,मिथिला की राजकुमारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी...
निहारती है राह सीता,ह्र्दयतल में बसाये रघुनाथ
क्यों न आते हैं रघुवर,क्यों न ले जाते मुझे साथ
रोती है आत्मा सियाराम की छाई है विपदा भारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी
भटक रही होगी कहाँ...
भटक रही होगी कहाँ,मिथिला की राजकुमारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी...
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी
व्याकुल हैं राम कैसी,होगी सीता हमारी.
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