सर्दियों की धूप /स्वाति श्रीवास्तव

कोहरा, धुँध, ठंडक...
और तेज हवाओं को लेकर,
ये सर्द मौसम जब भी आ जाता है..
मन पर भी कोहरा सा छा जाता है......
उसे भी फिर कुछ नजर नहीं आता,
क्या चाहता है समझ नहीं पाता,
रहता है स्मृतियों में गुम, निष्क्रिय और सुस्त....
भावनाएं भी हो जाती है कुछ सुसुप्त..
और सब कुछ लगता है अधूरा अधूरा.......
ऐसे में तुम्हारा आना...
जैसे सर्दियों मे कभी धूप निकल आती हैं.....
पिघलती है फिर कोहरे की चादर.. 
मिटने लगती है शुष्कता.. 
मन फिर से हो उठता है उष्ण ..
उमड़ने लगता है भावनाओं का प्रवाह..
हवा में घुलती गर्माहट की तरह...
और लगता है अब जिंदगी पूरी है....
तुम्हारा होना..
धूप जैसा ही जरूरी है... 


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