किस्मत संवारने को अपना घर छोड़ आए/ हर्षिता यादव

किस्मत   संवारने को अपना घर छोड़ आए 
माँ  की  नम आँखे  पिता का प्यार  कहाँ  छोड़  आए? 
अपने  दिल की तड़प  को  बताएं कैसे? 
मिट्टी  की खोज में सोना छोड़ आए 
शहर के पथ पर  निकले जब घर से 
उनके दिल में प्यार का इक  फंदा  छोड़ आए 
चूल्हे  की  सेंकी रोटी  कहाँ  छोड़ आए? 
   कूड़े  की  ढेर  से उठते  हैं  बदबू
हम  सरसो  के  फूल की  मधुमय  सुगंध कहाँ  छोड़ आए? 
चिड़ियों की चहक, कोकिल  की  कुहुक, पपीहे  की  टीस छोड़  आए 
हरी  चूनर  में  छुपी दुल्हन  सी  धरती छोड़ आए  
सावन की घटा और  मोर की  छटा  कहाँ  छोड़ आए? 
ज़िंदगी के मण्डप में  बैठे हैं इस कदर कि, 
कहकहो के  बीच  आंसुओ  का  रेला  छोड़ आए 
ज़िन्दगी  संवारने  को  भटकते  हैं हर  वक्त 
खेत  छोड़ आए खलिहान  छोड़ आए 
घर के समीप का वो    सरोवर भी छोड़ आए।

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