उद्देश्य ही सर्वोपरि/अभय प्रताप सिंह

रघुनन्दन बनने को राजा थे, वनवास सहर्ष स्वीकार किया
राजकुमारी थीं जानकी, किन्तु निर्णय में पति का साथ दिया
लक्ष्मण चल पङे पीछे, भरत ने भी वनवास लिया
सह ना सके यह पीङा दशरथ सो उनको र्स्वगवास मिला
इतनी पीङाओं में भी प्रभु राम ने विवेक से काम लिया
उद्देश्य प्राप्ति के हित में प्रभु ने क्षणिक भावनाओं का बलिदान किया।
 
माधव ने कैद में जन्म लिया, गोकुल में बचपन बिताई
फिर गोकुल के प्रेम को छोङा, सूनी की माँ की अँगनाई
गोपियों ने विरह सहा, कृष्ण ने छोङी माखन-मलाई
समयोचित जान मथुरा को छोङा, नगरी द्वारिका फिर बसाई
धर्म हित में फिर माधव ने महाभारत भी रचाई
प्रभु राम की भाँति माधव ने भी उद्देश्य को सर्वोपरि बताई।
 
लक्ष्मीबाई ने युद्ध चुना, प्रताप ने स्वाभिमान
सरदारों ने भी फूँकी बिगुल, किसानों ने भी नहीं सहा अपमान
राय, विद्यासागर ने समाजोत्थान किया, तिलक, गोखले ने दिलाई पहचान
बापू ने पुर्नजागरण किया, सुभाष भगत ने डाली नई जान
आजादी की खातिर किसी ने नहीं सोचा निजी काम
क्षणिक भावनाओं को त्याग कर सबने बढ़ाई देश की शान।
 
अतः हमको भी लेनी है एक सीख, क्षणिक भावनाओं में फंसना नहीं है ठीक
स्वयं को जानकर, उद्देश्य को पहचान कर, करें निर्णय का चयन,
दूरगामी हो परिणाम जिसके, हो संपूर्ण समाज का हित
हार-जीत सुख-दुख को कालचक्र मानकर, 
निरंतर बढ़ते रहना है सबसे उत्तम सबसे उचित।

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