शरद का स्पर्श/अमित कुमार कुशवाहा

 शरद का आया है मधुर, मंद-मंद पवन का गान,
चंद्रिका की चंचल छाया, करती धरती पर नर्तन महान।


नील नभ के विस्तृत पट पर, तारे जगमग करते हास,
हिमकणों से धुली शिखर पर, ठिठक गई जीवन की प्यास।


पीत पत्र की सरसराहट में, छिपा है ऋतु का मृदु संवाद,
शांत झील के प्रतिबिंब में, छलक रहा है निसर्ग प्रसाद।


विपिन का कोमल श्वास उठे, जैसे स्वर्ण मुकुट धरे वसुधा,
मधुर महकती अमराइयों में, नवजीवन की छवि सजीव धरा।


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