ब्राह्मण और मुस्लिम प्रेम/ अर्पित सर्वेश

पता है हम इंसानों ने सबसे बड़ी गलती क्या की ,
हमने प्यार को भी धर्म के नाम पर बात दिया


वो खुदा का सजदा करती है,
मैं भगवान की पूजा करता हूं 

वो अल्लाह की बंदी है,
मैं भगवान का भक्त हूं 

वो अपने धर्म से प्यार करती है,
मैं अपने कर्म से करता हूं 

वो अल्लाह के सामने झुकती है ,
मैं भगवान के सामने नतमस्तक हो जाता हूं 

मेरे अस्सलामु अलैकुम का जवाब नमस्ते से देती है,
मेरे और उसका भविष्य क्या होगा इस बारे में सोचती है 

वो सुराह फतिहा पढ़ती है ,मैं गायत्री मंत्र का उच्चारण करता हूं,
वो मेरे धर्म का और मैं उसके धर्म का सम्मान करता हूं 

वो इज्जत मेरी करती है,मैं खयाल उसका करता हूं 
वो जकात करती है , मैं दान करता हूं 

वो हज पर जाति है ,मैं तीरथ चारों धाम करता हूं 
वो मुझे अपना मानती है,मैं उसका ध्यान रखता हूं 

वो धर्म को अपना शान कहती है,
अर्पित को वो महान कहती है

अगर धर्म हमारा एक होता ,
तुम सनातनी या मैं मुसलमान होता
तो आज तुम मेरी और मैं तुम्हारा जान होता

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