मैं सावन और तुम / आशुतोष उपाध्याय

अब के सावन में तो मैं झूला अकेले झूलूंगा 
तुम भूल मुझको जाओगे पर मैं तुम्हें ना भूलूंगा
जो दिल में थी एक बात दबी 
वो साथ मर ही जाएगी 
खुशबू मेरे जिस्म की तू भूल कैसे पाएगी
जो मुश्किलों में साथ था जिसे छोड़के तुम जाओगे
तुम्हें नींद तक ना आएगी तुम बहुत ही पछताओगे
मैं दर्द कहने आया हूं मैं दर्द कहके जाऊंगा
तुम भले ही रह लोगे पर मैं तो ना रह पाऊंगा
एक बात सच मैं कहता हूं उसे ध्यान से अब तुम सुनो
मैं ख्वाब तेरे बुनता हूं भले ख्वाब तुम उसका बुनो
मिलते हो किसी गैर से मालूम मुझको ये भी है
कैसे मै दे दूं तेरा हांथ होता क्या इश्क में ये भी है
हो नीलामी इश्क की उसे कैसे होता देख लूं
तुम सोओ उसकी बाहों में तुम्हें सोता कैसा देख लूं
रातों में रोता हूं ना खबर है मेरी तुम्हें
कैसे जहर को पीता हूं ना जानो तुम ना जानू मैं
तुम बेवफा हो इश्क में तेरा कोई जमीर नहीं
तू फूल होके मेरा पर अब खिलेगा तू और कहीं
जा जी ले अपनी ज़िंदगी तू नया इक अफसाना लिख
देता हूं तुम्हें छोड़ मैं तू ना कोई तू बहाना लिख
तुम छोड़ दोगे मुझको तो मैं तो मर न जाऊंगा
तुम तो सिर्फ आगे बढ़ोगे मैं तो आसमां पर चढ़ जाऊंगा

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