इससे बेहतर नहीं है दूजा कोई काम,
इबादतें हकीकी से जब दिल को मिला सुकून, ज़ेहेन के किसी कोने में था अल्फ़ाज़ों का सुतुन. अशार में पिरोकर हर एक लफ़्ज़ को,
होगया
फिर नज्म बनाने का जुनून ..
कर इबादत खुदा की ,इज्जत ,मोहब्बत, खिदमत ,दौलत सब कमाली ,
भटके जो रास्ता तो चैन और नींद गवाली, मुख्तसर सा था मगर तवील हो गया ,
वह गुनाहों का सफर जिसने मंजिल चुरा ली पाया वही जो हमने था खोया कर याद अपने गुना बहुत देर रोया झुका के फिर सजदे में अपना सर, दुआओं से पाया जो हमने था खोया।
0 Comments