मै कौन हूँ/क़मर शेख

मैं क्या हूं किसी ने ना जाना, सभी के दर्द को मैंने अपना माना.. मां होती तो चेहरा पढ़ कर दुख भाप लेती, मेरी हस्ती क्या है ये सिर्फ मेरे खुदा ने जाना...
बड़े हो समझदार बनो, छोटी हो हद में रहो, यहीं सुन-सुन कर बस अपनी उमर बिताये... रिश्तों की इस उलझन में अपनी जगह क्या , कभी समझ ना पाये।
अछो ने अच्छा और बुरे ने बुरा बुरा जाना मुझे,
जिसकी जैसी सोच थी उसने वैसा माना मुझे।
किस को समझाऊ कौन समझेगा दिल की बातें, थक गए अब किसी को भी नहीं समझाना मुझे.. 
किस्से कहूं कौन सुनेगा मेरी यह दुख भरी दास्तां हर कोई है उल्झा 
हुआ, हर कोई है परेशान,
अकेले ही चल मंजिल को पाना है तय कर लिया, खुदा जब साथ है तो फिर हर मुश्किल है आसान

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