प्रेम/ कवि स्नेहर्ष

चलती हवा कान में मल्हार गाती है, 
बंद आंखों से उसकी तस्वीर दिखाती है |
 बैठे बैठे उसकी सोच में डूब जाते हैं हम, 
और वो हमेशा हमसे नजरे चुराती है || 

दिखाती है नजरिया अपना आंखों से सताती है ,
इश्क करने का हुनर, मुझको सीखाती है |
कुछ हद तक दिल में तो, उसके भी प्रेम दिखता है, 
पता नहीं फिर किन बातों से इतना घबराती है  ||
                      

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