डॉक्टर मौमिता /वर्षा सिंह

ईमानदारी ठोकरे खा रही,
गरीबी से जीवन बेहाल हुआ,
मजबूरियों का फायदा उठाती दुनियाँ,
आज इंसानियत फिर से शर्मसार हुई,
पैसो की खातिर जीता इंसान,
पैसों की खातिर बिक जाता इंसान,
शिक्षा आज पैसो पर टिक गयी,
गरीबों से आज शिक्षा ना जाने क्यों छिन गयी,
बेईमानों ने अपना आतंक फैलाया है,
हर मजबूर को अपना शिकार बनाया है,
डॉक्टर मौमिता की घटना ने पूरे देश को रुलाया है,
ये नहीं एक लड़की की कहानी,मौमिता ,निर्भया से लेकर ना जाने
कितनी बेटियां गवांती है अपनी जान को,
पहले तरसती संसार में आने को,
फिर बिलख्ती,परेशान होती अपना संसार बनाने को,
परिवार की इजाजत लेकर अपना सपना पूरा करने निकलती,
बाहर दरिंदगी का शिकार बन जाती है बेटियां,
अपनी किस्मत से हार जाती है बेटियां,
खुले आसमान की बात छोड़ो,
मेहफ़ूज रहने को तरसती है बेटियाँ,
हर जगह भेड़ियों का बसेरा ,फिर राम 
कहाँ से आएंगे,
आज द्रौपदी को बचाने माधव कहाँ से आएंगे,
काश! हर मैया का लल्ला कृष्ण सा होता,
द्रौपदी की स्वाभिमान की खातिर महाभारत युद्ध रचाता,
काश! दरिंदों को बीच चौराहे पर उन्हें भी तड़पा तड़पा कर मारा जाता,
नहीं चाहिए फांसी,
ना सालों साल सुनवाई चाहिए,
अरे इन दरिंदों के लिए बस एक कसाई चाहिए।

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