जीवन के एक अध्याय पर
उस अध्याय पर जिसमें तुम हो
तुम्हारी कविताएँ हैं
मेरा प्रेम अथवा भ्रम है
और उसमें
मेरे अंतरमन का
समस्त शेष है
जिसमें तुम्हारे अतिरिक्त
भी तुम ही हो,
तुम्हारी न लिखी गई कहानी है
और उसके किसी
अध्याय में
तुम्हारी अकथ्य वेदना है
अकल्पनीय शून्य है,,
और आजकल मैं
खोज रही हूँ
तुम्हारे प्रेम का अंकुरण
उसकी पवित्रता का स्रोत
उसके पनपने का स्थान
उस को उत्पन्न करने वाले
नयनों के अंजन की धार
जिसमें तुम अब भी कैद हो
जिसके लिए तुम्हारे
अधरों पर अब भी गीत हैं
जिसके लिए तुम अब भी लिखते हो!
और कहते हो
ऐसे ही!
ढूंढ रही हूँ मैं
इस
'ऐसे ही' का सटीक वाक्य!
जिस वाक्य में
ऐसे ही
और कुछ नहीं में
वह बहुत कुछ है
जो तुमने सहेजकर रखा है,
किन्तु ऐसे ही,
इस ऐसे ही की व्याख्या जानना
चाहती हूँ,
जानना चाहती हूँ
परत दर परत
चंचल मन का शांत
होना, कैसे संभव हुआ
कैसे हुआ था मधुमय
सहज प्रीत का आरम्भ
कैसे लिखे गए थे सुंदर डायरी
के पृष्ठ पर धीरे धीरे
प्रेम के अनगढ़ गीत
जो गाए नहीं गए
केवल लिखे गए
और कुछ वे गीत भी
जो न गाए गए न लिखे गए
केवल गुनगुनाए गए,
किसी को सोचकर
बिना कुछ समझे ऐसे ही,
और जब सब कुछ
सुंदर था प्यारा था
तो कैसे रह गया अधूरा
बहुत कुछ दो सुलझे
हुए किरदारों में
क्यूँ नहीं हो पाया सामंजस्य
दो सुंदर आत्माओं के मध्य
क्या रह गया
किसकी तरफ से,
क्या छूट गया
किसकी तरफ से,
जब था सबकुछ दो तरफा
हालांकि
मैं जानती हूँ
मेरा ये शोध परिणाम
पर नहीं पहुंचेगा
न लोग जान पाएंगे
दो सरल आत्माओं के
बिछड़ने से क्या टूटता है
क्या क्या छूटता है
मैं जानती हूँ
कि तुम्हारे अलावा और कोई
नहीं जो मेरे
इस शोध को पूर्ण करे
और यह भी जानती हूँ
कि तुम कहोगे -
यह कोई चर्चा का विषय नहीं
मेरा प्रेम किसी फिल्म
की कहानी नही,
जिसे प्रसारित किया जाए
हर किसी को बताया जाए
तुम्हें क्रोध आएगा
और फिर
तुम मौन रहोगे
तुम्हारा अकथ्य दृढ़ है
तुम उसके लिए
अब भी दृढ़ हो
इसलिए छोड़ दे रही हूँ
इस शोध को
अनेक संदेहात्मक
कल्पनाओं के द्वार पर
तुम्हारे अकथ्य को
समर्पित करते हुए
अनाधिकारिक
मन के पृष्ठ पर
अभिकल्प के रूप में
तुम्हारे लिए....
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