किसान की मेहनत/काजल शर्मा

हल चलाता सूरज संग,
खेतों में गूँजता श्रम का रंग।
धरती माँ से करता प्यार,
किसान है जीवन का आधार।

मिट्टी में अपने सपने बोता,
पसीने से हर बीज को सींचता।
सूरज की तपिश सह जाता,
चाँदनी में भी चैन न पाता।

बारिश, धूप, आँधी सहकर,
हर मौसम को हँसते झेलकर।
खेतों में फसलें लहलाती,
उसकी मेहनत की गाथा सुनाती।

जब फसल तैयार हो जाती,
उसकी आँखों में चमक छा जाती।
पर बाजार में मिलता क्या?
उसके श्रम का मूल्य कहाँ?

शहरों में दुगने दामों में बिकता,
जो गाँव में उसके हाथों से निकलता।
फिर भी वो मुस्कुराता है,
हर भूखे का पेट भर जाता है।

किसान नहीं सिर्फ़ अन्नदाता,
वो धरती का असली देवता।
उसकी मेहनत, उसका मान,
रखें सदा उसका सम्मान।

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